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नायिका

nayika

अनुवाद : राजेंद्र प्रसाद मिश्र

प्रतिभा शतपथी

अन्य

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और अधिकप्रतिभा शतपथी

    सुनो,

    किसी और के हाथों

    कभी नहीं

    अपने ही हाथों

    भोगती हूँ मैं यातनाएँ

    ख़ुद ही बुनती हूँ जाल

    ख़ुद ही उलझ-पुलझकर

    फड़फड़ाती हूँ

    ख़ुद ही बुला लाती हूँ

    बुराई, अपयश

    अकुलाहट, हाहाकार

    निष्ठुरता, प्रताड़ना

    झूठे आक्षेपों

    के आगे कूद पड़ती हूँ मैं

    फूट पड़ते हैं पंचप्राण

    गलगलाकर बहने लगती है रक्त-नदी

    बहा ले जाती है रक्त-नदी की धारा

    थाती मेरी,

    फिर भी सूक्ष्मतम परिधान में

    अगोरे बैठी रहती हूँ मैं

    सिंहासन

    निपट रत्नों का

    पुरुष,

    भिक्षुक, चंडाल कभी

    कभी राजेश्वर

    तो कभी

    ध्यानमग्न संन्यासी बन

    खड़े रहते हैं

    उस सिंहासन की

    निकटतम भूमि पर

    स्वेच्छा से

    मैं परम कृपण

    मैं चरम दानी,

    एक ही बिंदु पर

    समस्या और समाधान

    रक्ताक्त घावों से मिलते

    अधीर आनंद जैसा

    मूल्यवान

    स्वयं ही लीला

    स्वयं ही श्रेयगुण

    नायिका मैं

    मुख्या, मैं अनन्या

    ध्वंस प्रवृत्त काल की

    विपक्ष में स्पर्धा करती हूँ,

    प्रत्येक उच्चारण से

    कटाक्ष से अपनी

    मुस्कुराहट से, भंगिमा से

    आघात से, आह्लाद से

    अभिमान से, क्रोध से

    यहाँ तक कि

    कठोरतम ईर्ष्या से मेरी

    लेता है जन्म

    एक महाकवि।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधा-आधा नक्षत्र (पृष्ठ 7)
    • रचनाकार : प्रतिभा शतपथी
    • प्रकाशन : मेघा बुक्स

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