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हर्ष-विषाद योग

harsh vishad yog

अनुवाद : प्रवीण पण्ड्या

हर्षदेव माधव

अन्य

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हर्षदेव माधव

हर्ष-विषाद योग

हर्षदेव माधव

और अधिकहर्षदेव माधव

    'रिलीफ़' सिनेमाघर के पास खड़ा हूँ

    (दीवार पर लगे पोस्टर की तरह)

    हज़ारों पैरों की आहट सुनता हुआ (बहरा),

    गति में तटस्थ/निरपेक्ष।

    चौराहे पर खड़ा ट्राफ़िक पुलिस का जवान

    बताता है जाने की दिशा

    (मैं घोंसले से भटका पखेरू)

    लालरंग की बसें दौड़ती हैं...

    दौड़ते हैं घड़ी के काँटें

    दौड़ती हैं...बोबी, जुली, रीटा, गीता, माधुरियाँ...

    भागती हैं...

    दुष्यंत का स्वागत तपोवन में।

    यहाँ सभी भटके हुए-खोए हुए

    अपने आपको भी नहीं देखते हैं।

    कौन तपोवन में-दुष्यंत या मैं?

    बिल से निकलती चींटियों की तरह

    निकले हैं सिनेमाघर से

    शहर के लोग।

    बहता है लोगों का प्रवाह।

    तट पर क्षिप्त मत्स्य-सा, नदी किनारे के पेड़-सा

    देखता हूँ-

    मेरी हँसी लूट ली है इस शहर ने।

    (हरा पत्ता छूट पड़ा है पेड़ से)

    केशव नहीं है मेरे सारथी,

    मेरे पास रथ क्या,

    मनोरथ भी नहीं है।

    अधर्मक्षेत्र में देखता हूँ अपने को।

    शहर में यही है प्रत्येक अर्जुन का भाग्य,

    जहाँ विषाद है

    विषाद ही...।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तेरे स्पर्श-स्पर्श में (पृष्ठ 20)
    • रचनाकार : हर्षदेव माधव
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2016

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