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हँसते-हँसते

hanste hanste

राजेश सकलानी

अन्य

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राजेश सकलानी

हँसते-हँसते

राजेश सकलानी

और अधिकराजेश सकलानी

    (स्मृति रघुवीर सहाय)

    किसी को याद नहीं उसका हँसना

    कैसे वह लगता है

    आँखें मुँद जाती है

    आँसू फैल जाते हैं कनपटियों तक

    एक हँसी रुकती है फिर उठती है

    जाने कितने वर्षों से रुकी हुई हो

    मित्र अमित्र सब बेबस जैसे

    सहमत हों कुछ अनचीन्हीं अनजानी बातों पर

    कुछ मुस्कराते रुक जाते हैं/डर जाते हैं

    माँ को तब फ़िक्र हुई

    कहा—तू इतना मत हँस

    बहुत हो गया

    कहते-कहते छूट जाता

    उसका कहना बतलाना

    ऐसे ही है लोग हमारी बस्ती में

    हँसते हैं, हँसते-हँसते ग़ुम जाते हैं

    हाड़तोड़ इस दोपहरी में काम पर

    लग जाते हैं

    देखो उसको कैसे चुप है

    जैसे वह हँसा नहीं था।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पानी है तो फूटेगा (पृष्ठ 103)
    • रचनाकार : राजेश सकलानी
    • प्रकाशन : परिकल्पना प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

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