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हड्डी का दर्द

haDDi ka dard

भगतसिंह सोनी

अन्य

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भगतसिंह सोनी

हड्डी का दर्द

भगतसिंह सोनी

और अधिकभगतसिंह सोनी

    हल्के पीलेपन-युक्त सफ़ेद हड्डियों के जोड़

    चटख़ रहे हैं

    छा रहे हैं अब आँखों के आगे अंधकार

    स्मृतियाँ तिथियों की तरह सरक रही हैं।

    मेरे काँपते हुए पैरों के तले

    पृथ्वी कब से एक पैर पर खड़ी है लगातार।

    पक्षी आकाश के ऊपर और ऊपर

    उड़ना चाहते हैं और हाथ हिलाते हैं।

    हमारी हड्डियों के भीतर रचे हैं

    पृथ्वी और आकाश के बीच का अँधेरा।

    हड्डियों के चटख़ने की ध्वनि

    काफ़ी तेज़ हो गई है

    लगता है जो कुछ है

    एक लावा की तरह फूट पड़ेगा।

    और निकल पड़ेगा

    हमारे शरीर से बाहर अकस्मात्।

    स्रोत :
    • पुस्तक : साक्षात्कार 273 (पृष्ठ 53)
    • संपादक : भगवत रावत
    • रचनाकार : भगतसिंह सोनी

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