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गीतों की राह

giton ki raah

फ्रेडरिक जॉर्ज युंगर

अन्य

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और अधिकफ्रेडरिक जॉर्ज युंगर

    बच्चों के चेहरों पर

    पुत गया है मल-बेरी का रस

    मीठे फलों के आस्वादक, चुराते हुए घूम रहे हैं वे

    फलों के धब्बों वाली पोशाक में नाच रहे हैं बच्चे

    नाच रही है उनके साथ पछुवा हवा

    नाच रहे हैं रस्सियों पर सूखते हुए कपड़े

    मानो आश्चर्यजनक जीवन की साँसें

    कोई फूँक गया है मनुष्य के रीते हाड़-मांस में!

    छायाएँ, स्वप्न, गुज़रे हुए लोग

    धूप भरे गाँवों में बज उठा है एक ढोल

    पाखी बोलते हैं

    झाड़ियाँ गूँजती हैं

    सरल है इनका अर्थ समझना

    तुम लौट आए हो

    लौट आए हो जहाँ से चले थे

    अब तुम जान चुके हो कि एक लगते हैं पालना और ताबूत!

    वृत्त पूरा हो गया है

    क्योंकि केंद्र मिल गया है

    मेरी गुज़र है

    कुओं के निगूढतम स्रोत तक ही,

    अंगारों के सुलगने के क्षण तक ही,

    गीतों की उठान हुआ करती है

    जड़ों से शिखर-बिंदु तक

    और फिर स्वर उतरते हैं

    जो गहरे अँधेरे में है

    और ऊपर प्रकाश में—

    दोनों को छूकर गुज़रती है

    गीतों की राह

    स्रोत :
    • पुस्तक : देशान्तर (पृष्ठ 227)
    • संपादक : धर्मवीर भारती
    • रचनाकार : फ्रेडरिक जॉर्ज युंगर
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
    • संस्करण : 1960

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