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कविता करती लड़कियाँ

kawita karti laDkiyan

हरविंदर भंडाल

अन्य

अन्य

हरविंदर भंडाल

कविता करती लड़कियाँ

हरविंदर भंडाल

दूर अँधेरे की ओट में सिमटी बैठी

जलावतन कविता

आहट महसूस करती है

चाँदनी का लिबास पहन लेती है

अपने ही जिस्म में उग आए

ओस कणों पर सवार होकर

सपनों से अक्षर अर्पित कर देती है

उन लड़कियों को

जो कविता की जलावतनी की उम्र में

अपनी पलकों में

कविता के आँसू पिरो रही हैं

—कुछ लड़कियाँ कविता कह रही हैं।

वैसे

अभी मन की दीवारों पर उगे

बहुत वटवृक्ष हैं

जिनके नीचे

संबंधों के प्रेत भटकते हैं प्रायः

मिट्टी में

अवशेषों की दुर्गंध है

और अक्स में

तारों की राख

समंदर अब डूब चुके जहाज़ों का

मात्र मलबा रह गया है

समंदर के मलबे में मिले शंख को

कान से लगाकर

कुछ लड़कियाँ

लहरों से जन्मा संगीत सुन रही हैं

—कुछ कविता लिख रही हैं।

कविता के शील का

यदि यह मौसम होता,

तो कविता

गाल पर सूखे आँसू के

निशान-सी नहीं

बुझे हुए जुगनू की रोशनी में

राह देखने की

लालसा-भर होती

कविता गजरों में छिपी सुगंध-सी

अथवा

चूड़ियों के रंग-सी होती

कविता सूर्य-सी

या चंद्रमा-सी होती

शिव की जटाओं में

सूख रही गंगा के सामने

कुछ लड़कियाँ

धूप के पैबंदों में

बादल के टुकड़े बाँधकर

सावन का सृजन कर रही हैं।

—कुछ लड़कियाँ कविता लिख रही हैं।

स्रोत :
  • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 704)
  • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
  • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2014

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