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घर

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सरबजीत गरचा

अन्य

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और अधिकसरबजीत गरचा

    जब लूँगा आख़री साँस

    तब किस किताब का

    कौन-सा पन्ना होगा खुला

    आँखों के सामने?

    किस कविता की किस पंक्ति पर

    लगी होगी अंतिम टकटकी?

    शायद एक ही विचार करेगा

    दिल में रतजगा

    निर्दोष पंक्तियों के सदोष रचयिता को

    क्यों लगा पाया भींचकर गले

    ढूँढ़ता रहा सपनों के लिए जगह

    शब्दों के लिए वजह

    जो कुछ पाया

    पुतलियों ने पिघलाया

    यही तो थी वह जगह

    जहाँ सपने बन जाते हैं

    बिना पते वाली चिट्ठियाँ

    था कोई डाकिया जो आता था

    पीछे वाले दरवाज़े से

    कभी दिखाई नहीं दिया वह

    मैं भी कैसे कर सकता था दावा

    कि जो चिट्ठियाँ मुझे मिलीं

    वह मेरी ही थीं

    दिन में जिनसे बात कर सका

    वही दोस्त मुझे दिखते रहे सपने में

    एक धीमी नदी में छोड़ी

    उनकी काग़ज़ की कश्तियाँ

    मुझे रह-रहकर मिलती रहीं

    मेरी भी मिली होंगी

    कुछ और दोस्तों को

    जिन्हें मैं किनारे बैठकर

    देख नहीं सका था

    पानी स्याही को मिटा नहीं पाया

    शायद उसे भी कोई

    लिखा हुआ संदेश भा गया था

    संवाद नहीं हुआ

    फिर भी कुछ पतों पर होता रहा

    बातों का लेन-देन हमेशा

    वही नदी भी आई हो

    सभी दोस्तों के सपने में

    फिर भी सब ने दी

    उस अदृश्य डाकिए को दुआ

    जिसने बनाए हमारे घर

    बिना पते वाली चिठ्ठियों के गंतव्य

    बाक़ी घरों से मन ही मन जुड़ा हर घर

    बन गया कवि का घर

    स्रोत :
    • रचनाकार : सरबजीत गरचा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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