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घर और पड़ोस

ghar aur paDos

बसंत त्रिपाठी

अन्य

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बसंत त्रिपाठी

घर और पड़ोस

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    एक मेरा घर है

    जहाँ मैं रहता हूँ

    एक मेरा पड़ोस है

    जहाँ पड़ोसी रहते हैं

    पड़ोसी कभी देखते हैं

    तो दूर से मुस्कुरा देते हैं

    बदले में मैं भी मुस्कुराता हूँ

    यदि नज़र पहले मेरी पड़ी तो

    यह क्रम उलट जाता है

    वे मेरे घर आते

    मैं उनके घर जाता

    हममें लड़ाई या कहा-सुनी की गुंजाइश बिल्कुल नहीं है

    गो कि वक़्त ही कहाँ है हमारे पास इतना

    उनके घर में लेकिन वही धारावाहिक देखे जाते

    जो हमारे घर में

    उनकी खिड़कियों के फ्रेम पर फुदकने वाली चिड़िया

    हमारी खिड़कियों के फ्रेम पर भी फुदकती

    कभी-कभी पतंग कट कर

    उनकी छत पर गिरते-गिरते

    हमारी छत पर गिर जाती

    एक ही भूरा बिल्ला

    दोनों के पतीले से दूध चट कर भाग जाता

    हम दोनों के बच्चे एक साथ

    सड़क पर खेलते

    एक ही जैसे खेल

    वे अभी बच्चे हैं

    वे साथ-साथ खेलते हैं

    उछलते-कूदते हैं

    जब वे बड़े हो जाएँगे

    तो एक उनका भी घर होगा

    और ऐसा ही उनका भी एक पड़ोस।

    स्रोत :
    • रचनाकार : बसंत त्रिपाठी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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