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घास की दो पत्तियाँ

ghaas ki do pattiyan

योगेश कुमार ध्यानी

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योगेश कुमार ध्यानी

घास की दो पत्तियाँ

योगेश कुमार ध्यानी

और अधिकयोगेश कुमार ध्यानी

    उस समय जब

    वैमनस्य से टूट की कगार पर पहुँच जाएगी दुनिया

    बंजर भूमि पर कुछ नहीं बचेगा

    बचे हुए अंतिम कुछ लोग

    बाँट रहे होंगे बची हुई चीज़ें

    जब दुनिया के आख़िरी सौदों की आख़िरी बोली लग रही होगी

    जब अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र

    अपनी बड़ी-बड़ी परिभाषाओं को ढहा रहे होंगे

    यह स्वीकारते हुए कि दुनिया को सबसे ज़्यादा हानि

    भीमकाय परिभाषाओं ने पहुँचाई

    ठीक उस समय धूसर ज़मीन पर उगेंगी

    घास की पहली दो पत्तियाँ

    जो पत्थर हो चुके मनुष्य मे

    रोपेंगी मनुष्यता...।

    स्रोत :
    • रचनाकार : योगेश कुमार ध्यानी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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