गऊ माई

gau mai

अनीस देहाती

गऊ माई! तुहैं हम बखानी कती?

तोहरी करनी उद्धार होबइ कबउ।

लइके कुटिया से महलन तलुक तू अहा,

अपनी जाती तोहका भिंजरबइ कबउ।

लाल पैदा भवा जब केहू के घरे,

तोहरै दुधवा तौ ओ‌का पियावा गवा।

पहिलि माई भइउ तू गदेलन के सब,

अनीसउ तुहीं से जियावा गवा।

तू बोला भले मुल तू जाना धू सब।

सुख तकलीफ दुनिया के जाना थू सब।

बिन कसुरवा के जौ तोहका पीटिस केहू,

भूल आपन समझि के तू सहि लेथू सब।

बाप माई है जस वहसे श्रीकर होरिल,

नियम आजु तक तोहरे अंदर अहै।

तोहरी नाई जो वे मारा-पीटा गयेन,

रीति आपन समझी वै बेचारेन सहैं।

लइके दुखिया में राजा महराजा तक,

तोहरे पूतन से आपन किसानी करें।

तोहरे ये पूतै सारी उमिरिमा तलक,

खेत सींचे का बंधवन से पानी भरे।

तू जानिउ कि हिंदू-तुरुक के अहेन,

तू जानिउ कि छोटका, जबर के अहेन।

सबकै सथया दिहयू तू सदा प्रेम से,

तोहरे ङ्गातिर सबै जाति साथे रहेन।

जब तलुक तू जिऊ केहु दुख ना विहयू,

मरि गयेव पै सबै घर निसानी रहे।

चाम से तोहरे चपकी जो नाधा बनेन,

जउने मा आज दुनिया राँजी अहै।

हम सबै एक परभू के संतान अही,

नियम जाना हम तोहरे बेउहार से।

होत भिनसार सब हाथ जोरैं तुहें,

जीति ल्या सबका तू अपनी पुचकार से।

माई! कोखिया से अपने भले ना जन्यू,

मोच्छवाली घरी जिन हेराइउ तनी।

एक बिनती अहइ, पूँछ पकड़ाइ के,

पार भवत्तिन्धु हमका कराइउ तनी।

स्रोत :
  • रचनाकार : अनीस देहाती
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए शैलेंद्र कुमार शुक्ल द्वारा चयनित

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