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गरमी आई तौ हँसा गाँव

garmi aai tau hansa gaanv

आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'

आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'

गरमी आई तौ हँसा गाँव

आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'

कपकपी थरथरी छू मंतर सरदी के सासन गा ओराइ,

गरमी कै लौटा राजपाट अब कहाँ धुँआ धक्कड़ देखाइ,

दुइ टेम कचालू खाइ खाइ मन तीत होइ गवा आलू से,

गोहूँ मा केतनी कसरि अहै काका पूछें तब कालू से।

कालू बोले धीरज राखा अबकी कसिके लागी गुराँव।

गरमी आई तौ हँसा गाँव॥

महुआ फूले, फन काढ़ि ठाढ़ धौं सेसनाग फुलवारी मा,

उठि बड़े भिनौखै भै गोहार मनि बरै लाग फुलवारी मा,

धाए लरिका बुढ़वा जवान केउ पलरी केउ लइके झउआ

धरती से उड़ि के डारी पर कनमनिया लखै बइठि कउआ।

जागा रमई भिनसार भवा चढ़ि करइ बड़ेरी काँव काँव।

गरमी आई तौ हँसा गाँव॥

जरि काटै बरे दरिद्दर कै जब हाथे मा हँसिया टनकी

रजवंती कोइली किरपलिया सुरताल भरे चूरी खनकी

मूड़े चढ़ि के लच्छिमी चलीं जब खेते से खरिहाने का

सब अपने अपने कामे मा का अता पता मेहमाने का।

मूड़े से लइके गोड़े तक लागै कंचन मा धँसा गाँव।

गरमी आई तौ हँसा गाँव॥

जस-जस तन झुरसै किरनन से तस तस तर होइ पसीना से

श्रम की गंगा के फूल झरै तो चमकै माथ नगीना से

ओनके कूलर कै ऐस तैस बइठे निबियाँ की छहियाँ मा

मौज कहाँ चौमहला माँ जइसा परकित की बहियाँ भा।

केतना सीतल केतना अजाद केतनौ किरनन मा कसा गाँव।

गरमी आई तौ हँसा गाँव॥

गुल्ली डंडा अब गे हेराइ अब गाँवन मा चलिगै गोली

जे काँखत रहे सेर होइगे मौसम पाए बदली बोली

बुढ़ऊ फिर से टनमन होइगे मसकुरन कचौरी पीसि देइँ

केउ कहै तेवारी मीजी का तौ काढ़ि उदन्ती खीस देइँ।

मस्ती मा बूड़ा अंग अंग केतनौ साँसत मा फँसा गाँव।

गरमी आई तौ हँसा गाँव॥

नंगे पायन के जुग लदिगे अब जुजबिन पाँव उघार रहै

किरपा कहा पलस्टिक कै अब सहतै बेड़ा पार अहै

केतनौ गरमै मुल चाय चली घर घर मा सँचरा कप पलेट,

बुढ़ऊ का पहिले पहुँचि जाइ लरिकन का केतनौ होइ लेट।

केतना चेतंत केतनौ फैसन के सेसनाग का डँसा गाँव।

गरमी आई तौ हँसा गाँव॥

अब भै अभाव कै खाट खड़ी अब बिस्तर बना पयारी का,

सँगै पूरा गउआँ पौढ़े डर नाहीं कुकुर बिलारी का,

लागै गोहार सब साथ देइँ बस आइ रहे, बस आइ रहे,

कुछ तौ ललकारत दौरि परै कुछ खड़े खड़े गरियाइ रहे।

एकता पयसरम के बल पर अब्बौ मूड़े पर बसा गाँव।

गरमी आई तौ हँसा गाँव॥

अन्नपूरना कै मंदिर सबके दाता कै धाम इहै,

केतनौ केउ चढ़े अकासे पर मुल आवै सबके काम इहै,

देइ फूल फल देइ इहै महुआ कटहर आम देइ,

गउआँ के सरग उहै भोगै जेकरी किसमत मा राम देइ।

ओकरी बुद्धी के बलिहारी जेका भुनगा मसा गाँव।

गरमी आई तौ हँसा गाँव॥

दादा काका भैया बच्चा के अहै पराया गउआँ मा,

चाहे केउ केतनौ बनि आया मुल माथ नवाया गउआँ मा,

परभू से बिनती हमार गउआँ से नाता टूटै ना,

जौनी माटी मा लोटे हैं माटी हमसे छूटै ना।

सारी धरती के धरमधुरी मेहनत के फल से लसा गाँव।

गरमी आई तौ हँसा गाँव॥

स्रोत :
  • पुस्तक : माटी औ महतारी (पृष्ठ 13)
  • रचनाकार : आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'
  • प्रकाशन : अवधी अकादमी

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