Font by Mehr Nastaliq Web

गणतंत्र-दिवस

gantantr diwas

ज्ञानेंद्रपति

अन्य

अन्य

ज्ञानेंद्रपति

गणतंत्र-दिवस

ज्ञानेंद्रपति

और अधिकज्ञानेंद्रपति

    यह इनका गणतंत्र-दिवस है

    तुम दूर से उन्हें देख कहोगे

    गिनती सीखने की उम्रवाले बच्चे चार-पाँच

    पकड़े हुए एक-एक हाथ में एक-एक नहीं, कई-कई

    नन्हें काग़ज़ी राष्ट्रीय झंडे तिरंगे

    लेकिन थोड़ा क़रीब होते ही

    तुम्हारा भरम मिट जाता है

    पचीस जनवरी की सर्द शाम शुरू-रात

    जब एक शीतलहर ठेल रही है सड़कों से लोगों को असमय ही घरों की ओर

    वे बेच रहे हैं ये झंडे

    घरमुँही दीठ के आगे लहराते

    झंडे, स्कूल जानेवाले उनके समवयसी बच्चे जिन्हें पकड़ेंगे

    गणतंत्र-दिवस की सुबह

    स्कूली समारोह में

    पूरी धज में जाते हुए

    उनके क़रीब

    उनके खेद-खाए उल्लास के क़रीब

    और छुटकों में जो बड़का है

    बतलाता है तुतले शब्दों, भेद-भरे स्वर में

    साठ रुपए सैकड़ा ले

    बेचते एक-एक रुपय में

    —हिसाब के पक्के!

    गिनती सीखने की उम्र वाले बच्चे

    गणतंत्र-दिवस-समारोह के शामियाने के बाहर खड़े

    जड़ाती रात की उछीड़ सड़क पर

    झंडों का झुँड उठाए, दीठ के आगे लहराते :

    झंडा उँचा रहे हमारा!

    स्रोत :
    • पुस्तक : संशयात्मा (पृष्ठ 249)
    • रचनाकार : ज्ञानेंद्रपति
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2016

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए