Font by Mehr Nastaliq Web

गादुर

gadur

रेनू यादव

अन्य

अन्य

रेनू यादव

गादुर

रेनू यादव

किन्ही खोह से घूरती

नयनशर से छिपकर

किसी घिनौने तलघर, छज्जे

से चिपकी लपलपाती पंखों से महूसस

कर लेती हैं

आहटें।

कहीं दूर से रही

असंख्य कामनाओं की गुहार

अश्रव्य ध्वनियों को

भिन्न-भिन्न पहचान

भिन्न-भिन्न कर

आशाओं के ज्वलंत

रेखाओं पर बनाती हैं

रेहड़ियाँ,

बीरबल की खिचड़ी

फिर भी

दूर जलती अग्नि की आश में

सिंक जाती है

पर इनकी खिचड़ी

सूर्य के प्रकाश

से रहती हैं सदैव वंचित

मन ही मन

खदबदाती-खलबलाती

बिल-बिलाने लगतीं

जैसे भीष्म सोए हों

शरशैय्या पर

अविजित युद्ध के

विजित प्रतीक्षा में

तभी तत्काल

खींच ली जाती हैं

सड़ाक

कामनाओं की चमड़ी,

शिखँडी के

आने से पहले

अर्जुन के

प्रत्यंचा खींचने

से पहले ही

भीष्म लोट गए

शरशैय्या बिछा

ख़ुद ही

तलघर, छज्जे, खोह में

हमेशा से

बिलगाए

हाशिए पर खड़े

गादुर

स्रोत :
  • रचनाकार : रेनू यादव
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY