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नखी सरोवर पर शरत्-पूर्णिमा

nakhi sarowar par sharat purnaima

उमाशंकर जोशी

अन्य

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उमाशंकर जोशी

नखी सरोवर पर शरत्-पूर्णिमा

उमाशंकर जोशी

और अधिकउमाशंकर जोशी

    झीने-झीने धूमिल में दीख रही है वह शृंगमाला,

    चूम रहे हैं नीचे, मंद वारितरंगों को नामी तटतरु,

    ग्रहण कर रहा है जल का हृदय

    नभ में खिले अभ्र के शुभ्र रंग,

    सो रहा है सर-उर

    फिर भी बुने जा रहे उसमें कई चित्र।

    सुभग हँस रही वीचिमाला देखकर पूर्ण चंद्र को,

    वृक्ष की वल्लरी में सो रही थी जो

    ठंडी-मीठी अनिल-लहरी

    अब नीर की मृदु सेज पर ढल पड़ती है,

    देकर नवजागृति परिमल-मृदु पल्लवप्रांत को।

    ज्यों ही होता सलिल-शशि का चारू संयोग,

    कोई कुसुम-कोमल अंगुलि देती हृ-तंत्री को स्पर्श।

    झुक जाते अर्धमीलित नयन,

    कहाँ से आ-पहुँचा यह गान?

    कह रही प्रकृति एकांतों में कोई मंजुल शब्द।

    ऐसे में अंतःश्रुतिपटल में जग उठता धन्य मंत्र :

    ‘सौंदर्यों को पी, उर-निर्झर फिर स्वतः गायेगा ही।'

    स्रोत :
    • पुस्तक : निशीथ एवं अन्य कविताएँ (पृष्ठ 93)
    • रचनाकार : कवि के साथ रघुवीर चौधरी, भोलाभाई पटेल
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1968

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