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फूल

phool

अनुवाद : लक्ष्मीधर मालवीय

शुन्तारो तानीकावा

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और अधिकशुन्तारो तानीकावा

    पंखुड़ी छने पर नम लगती है

    लगता है रंग भीतर से बाहर रिस कर आता

    फूल में झाँकने पर दिखलाई देती है गहरी घाटी

    फूल के बीचों-बीच उगे रोएँ

    लगता है अभी बोल पड़ेगा लगती हुई कोई बात

    समझ में नहीं आता इसका करूँ क्या

    एक पंखुड़ी मुँह में डालता हूँ तो

    उसकी ज़रा-सी खटास से दिमाग़ हो जाता है ख़ाली

    मास्टर कहते हैं फूलों के नाम याद करो

    पर मैं नहीं करना चाहता याद

    खेतों के बीच बड़े मैदान में खड़े हो

    खड़े होने के सिवा और कुछ नहीं करना चाहता

    नंगे पैर तलवा चुनचुनाता है

    घठ्ठों तक घुस जाता है सूरज

    आती है हवा की साँय-साँय गंध और स्वाद

    आदमी का नहीं चलता काम किए बिना काम

    फूल सिर्फ़ खिलता है रहता है जीवित

    स्रोत :
    • पुस्तक : सूखी नदी पर ख़ाली नाव (पृष्ठ 58)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : शुन्तारो तानीकावा
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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