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सफल पुरुष

saphal purush

पल्लवी विनोद

पल्लवी विनोद

सफल पुरुष

पल्लवी विनोद

तुम्हारे मन की गति बहुत तेज़ है

आस-पास विचरता हर दृश्य

बदल रहा है

तुम्हारे भीतर

कभी सब कुछ,

कभी कुछ नहीं पाने की अंतहीन

इच्छाओं का बादल बरस रहा है

जिन तालाब पोखरों से उड़कर

जल मेघ बना था

फिर उन्हीं में टहल रहा है

जिस शीर्ष को पाने की चाहत में,

तुम सब कुछ पीछे छोड़ आए

वो अब तुम्हें ख़ुशी नहीं देता है

बचपन में जो बच्चा मिट्टी से सनने को आतुर था

वही बड़ा होकर नाक पर रूमाल रख लेता है

सफलता वही रूमाल है

जो मिट्टी और इंसान के बीच

दीवार बन खड़ा हो गया है

अब तुम उस पार छटपटाते हो

तभी प्रेम की एक खिड़की खुलती है

मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू-सा प्रेम

तुम्हारे इर्द-गिर्द फैलता है

अहा! क्या पा लिया

सब कुछ पा लिया कह कर चिल्लाते तुम

धीरे-धीरे सीख जाते हो

जब जी चाहे उस खिड़की को खोलने

और बंद करने का हुनर

इस तरह तुम सफल पुरुष बन जाते हो

स्रोत :
  • रचनाकार : पल्लवी विनोद
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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