एक साल अउर बीता

ek saal aur bita

आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'

आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'

एक साल अउर बीता

आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'

कुछ बीतिगा लड़कपन की मौज म,मस्ती मा

कुछ बीतिगा डगर मा सुनसान बस्ती मा

कुछ बीति खोवइ मा कुछ बीति पावइ मा

कुछ बीति रोवइ मा कुछ बीति गावइ मा।

का चूक भइ कबहूँ सोचइ भा सुभीता।

एक साल अउर बीता।

कबहूँ जनान दुनिया अबहीं उछिन्न होई,

कबहूँ जनान सगरौ अब ताक धिन्न होई।

कबहूँ बजी पिपिहिरी कबहूँ बजा नगाड़ा,

गइ जरि कभौं उखाड़ी, झंडा कभौं गाड़ा।

कबहूँ बिना बातइ के लागिगा पलीता।

एक साल अउर बीता।

परसौं अहै दसहरा नरसौं अहै देवारी,

सब आइ के चला गे तिउहार बारी-बारी।

पनंरा अगस्त आवा, फिर आइ दुइ अक्तूबर,

हफ्ता भरे झंझट फैलाइ गा नवंबर।

नापै के बरे जिनगी हर साल नवा फीता।

एक साल अउर बीता।

महजिद से ताल ठोंकेन, मंदिर से ताल ठोंकेन,

केतनौ गयेन छोड़ावा फिर फिर से ताल ठोंकेन।

बनि के धरमधुरी सब केतना रकत बहाएन,

खूनइ किहेन उल्टी खूनइ खुब नहाएन।

दुइनौ छलाँग मारेन केउ बाघ केहू चीता।

एक साल अउर बीता।

दर्शन तलइयन के दिन फिर से किहे फेरा,

घाटन खिली सुतुही, पानी कुईं बेरा।

फिर हरसिंगार फूला, फिर डार-डार गमकी,

पछियाँव तनी दुरका सगरी सेंवार गमकी।

गदराई गईं उखिया, पियराइ गा पपीता।

एक साल अउर बीता।

हमरेउ अँजोर लौटइ, तोहरेउ अंजोर लौटइ,

इंसान कि जिनगी मा फिर फिर से भोर लौटइ।

धरती भाग जागइ दुख दरिद्द भागइ,

संसार के अंगना मा फिर जोत परब लागइ।

रावन कै उछिन्नी लौटइ सुमति सीता।

एक साल अउर बीता।

स्रोत :
  • पुस्तक : माटी औ महतारी (पृष्ठ 10)
  • रचनाकार : आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'
  • प्रकाशन : अवधी अकादमी

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