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एक प्रतिबद्धता

ek pratibaddhata

जगदीश चतुर्वेदी

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जगदीश चतुर्वेदी

एक प्रतिबद्धता

जगदीश चतुर्वेदी

और अधिकजगदीश चतुर्वेदी

    एक आवाज़ आती है मेरे पास की परछाई से रोज़ रात

    कटा हाथ थरथराता भरता है लैंप की रोशनी में

    कोई पुकारता है रोज़ हरे प्रकाश में

    और मैं दहशत में अनसुनी कर देता हूँ!

    प्रणय-हत्या के बाद

    मैं करना चाहता हूँ अपनी परछाई की हत्या

    और अपनी प्रिया के हर एक निशान को

    मसल देना चाहता हूँ

    चुपचाप!

    एक ज़िम्मेदारी की करवट बदलकर

    चिपक जाती है पत्नी

    और उसे प्यार करने के नाटक में

    मैं अज्ञात प्रेमिकाओं के गले घोंट देता हूँ

    हर रात!

    हो सकता था

    मैं अपने इस पाप से मुक्त

    पर मैं बहुत कमज़ोर प्राणी हूँ—

    इन अजान हत्याओं के बीच भटक रही है मेरी आत्मा

    और मैं इस जीवित मृत्यु को भोगने प्रतिश्रुत हूँ!

    स्रोत :
    • पुस्तक : विजप (पृष्ठ 72)
    • रचनाकार : जगदीश चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 1967

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