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एक पैबंद कहीं जोड़ना

ek paiband kahin joDna

मोहन राणा

अन्य

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मोहन राणा

एक पैबंद कहीं जोड़ना

मोहन राणा

और अधिकमोहन राणा

    वो जंगल पहले सूखा मेरे भीतर

    पत्थर हुई नदी आकाश हुआ बाँझ वहाँ

    धरती हुई परती सबसे पहले वहाँ

    फैला मरुस्थल

    सोखते की तरह सोख लेता हर नमी को

    कि हर आकार गिर पड़ता अपनी ही जड़ों में,

    पहले-पहल किया मैंने रेत के पुल को पार वहाँ

    उसे शब्दों में कहने से पहले,

    पाँवों तले दिखा कुछ हरा-सा सूखता

    एक याद जो बालू हो गई छूते ही

    वहीं खो गए मेरे पदचिन्ह

    बौराई घूमती एक गरम हवा

    उधेड़ती साँसों को फेफड़ों से

    बाहर दिखते भीतर के अंतरलोक में

    बचे हैं व्यतीत दिन मकड़जालों में

    टूटी हुई कुदालों के साथ बैठी हैं आशाएँ

    दिन के अधूरे छोरों पर

    एक पैबंद कहीं जोड़ना

    कि बन जाए कोई दरवाज़ा,

    इस सदी को रास्ता नहीं मिल रहा समय की अंधी गली में

    खुली आँखों से दिखता है जो अब

    ये दुनिया इसका आस-पास

    धूल होते शब्द,

    पहले मेरे भीतर ही उड़ी थी आँधी

    स्रोत :
    • रचनाकार : मोहन राणा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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