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धरती अपना संतुलन खो रही है

dharti apna santulan kho rahi hai

रामकुमार तिवारी

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रामकुमार तिवारी

धरती अपना संतुलन खो रही है

रामकुमार तिवारी

और अधिकरामकुमार तिवारी

    धरती पर

    भटक रहे हैं धरती के लिए

    अव्यक्त आकाश

    देख-देख

    सिलता हूँ आकाश!

    एक चादर में मेरी देह लिपटती है

    सुबह

    चादर को ऊपर तानता हूँ

    आकाश!

    आकाश नहीं

    चादर मिलती है इस तरह

    कि उसके बाहर

    अपने पैर फैलाता हूँ

    मेरे पैर धरती से बाहर निकले हैं

    धरती अपना संतुलन खो रही है

    स्रोत :
    • पुस्तक : कोई मेरी फ़ोटो ले रहा है (पृष्ठ 11)
    • रचनाकार : रामकुमार तिवारी
    • प्रकाशन : सूर्य प्रकाशन मंदिर
    • संस्करण : 2008

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