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दूरबीन

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कुमार अम्बुज

अन्य

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कुमार अम्बुज

दूरबीन

कुमार अम्बुज

और अधिककुमार अम्बुज

    कैमरे में लगी एक दूरबीन तुम्हारा पीछा करती है

    उसकी अपनी कोई राय नहीं है वह सिर्फ़ पीछा करती है

    वह किसी हड़बड़ाहट या तनाव में नहीं है

    यह तुम हो जो घबराहट से भर गए हो

    और अपनी साँसें ठीक कर रहे हो

    तुम जब पोशाक पहिनकर निकलते हो

    या गुसलख़ाने में नग्न अपने ऊपर डालते हो पानी

    वह तुम्हारे ठीक पीछे होती है यह उसका काम है

    तुम्हारे भीतर की नमी और टूटे पत्तों को उसने देखा है

    निर्जन, झील की लहरें, खेल का मैदान

    मई की रात ग्यारह बजे की हवा की स्मृति उसे है

    और वह दृश्य भी जब तुम मंच पर पसीना पोंछते थे

    पुल से तुमने जो छपाक् देखी थी

    उसके अभिलेखागार में वह तस्वीर है

    जब तुम चीख़ते हो, वमन करते हो

    या अवसाद में लेट जाते हो बिस्तर पर

    छत की छिपकली को देखते हो चुपचाप

    वह तुम्हें उत्तेजित करती है अपने निर्विकारपन से

    तुम्हारी क्रियाओं और लिपियों को वह साफ़ पढ़ती है

    तुम थक चुके हो और इस रात को

    अपने ऊपर से गुज़रने दे रहे हो

    तुम्हारी नींद में वह जाग्रत है अपलक

    तुम बचपन में पहुँच गए हो उन बातों को याद करते हो

    जिन्हें किसी को बताने से अब कोई मतलब नहीं

    कोई विश्वास नहीं करेगा दुनिया में ऐसा हुआ करता था

    ओझल होते जा रहे समय को दिखाने के लिए

    तुम इस दूरबीन का शुक्रिया अदा करते हो

    तुम्हारी इस कृतज्ञता को भी वह निस्संगता से देखती है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कुमार अम्बुज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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