दुनिया में

duniya mein

सुशीलनाथ कुमार

सुशीलनाथ कुमार

दुनिया में

सुशीलनाथ कुमार

दुनिया के सारे मोहों में

सबसे बड़ी है अमरता

शायद भुला दिए जाने का डर है

सड़कों, पुलों, पार्कों और प्रतिष्ठानों की तरह

हर पीढ़ी याद नहीं रखती

ग़ैर-ज़रूरी और बिना काम की बातें

बदलाव प्रकृति का शाश्वत नियम

गर्मी के बाद बारिश के मौसम में

आकाश में आकृतियाँ बदलते बादल

सड़कों, पार्कों, खेल के मैदानों, अस्पतालों

यहाँ तक कि शहरों के नाम की तरह

गीता का सार जानने के लिए

गीता-पाठ ज़रूरी नहीं

बसों के पीछे और शमशान घाट की दीवार पर

वैधानिक चेतावनी की तरह अंकित

तुम क्या लेकर आए थे और क्या लेकर जाओगे

जो आज तुम्हारा है

कल किसी और का हो जाएगा

फिर ज़िद क्यों है

जबकि उन्नीस का पहाड़ा और बालक के रूप

याद नहीं रहते दसवीं कक्षा के बाद

हालाँकि कुछ बातें याद रह जाती हैं

स्कूल में नीम के डंडे की पिटाई

दादा और परदादा के नाम

इसी तरह याद रह पाती हैं?

गायें, भैंसें और बकरियाँ

जिनका दूध पिया था माँ के बाद

उन भैंसों और बैलों की

शक्ल-सूरत, रंग और व्यवहार की

कितनी स्मृतियाँ शेष रहती हैं

जो जोतते रहे खेत और खींचते रहे गाड़ी

इतिहास की जिन पाठ्य-पुस्तकों में

तुम दर्ज हो जाना चाहते हो

उनमें किस पृष्ठ पर वर्णित है

किसके वार ने ठोंकी थी

कलिंग के ताबूत में अंतिम कील

श्रीलंका और जावा में भेजे गए शांति के संदेश

बुद्ध के मुँह से निकलने पर

किसने किए थे लिपिबद्ध

गाँव में मेरा घर जिस ज़मीन पर बना है

वह दादाजी के अनब्याहे चाचा की है

मुझे उनका नाम याद नहीं

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