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विकिरण रोग

vikiran rog

रोबेर्त रोज़्देस्त्वेंस्की

अन्य

अन्य

विकिरण-रोग

बड़ी रुखाई से कहते हैं लोग—

सीखो इसको सहना

इसका इलाज तो मरने के बाद भी रुकता

फिर भी अच्छा होने की उम्मीद होती

राय यही है कोई किरण नहीं आशा की

आओ खुलकर बोलो—क्या यह न्यायोचित है

हिरोशिमाओ के वारिस

अपने पुरखों का हिसाब बेबाक करें

शबनम की बूँदों में होती चमक विषैली

और हवा निर्मल बनने का ढोंग रचाती

बेक़सूर के शिकवे बड़े कष्टदायक होते हैं

लुँज-पुँज नन्हें बच्चे रोते-विलाप करते हैं

ढाला गया समय के द्वारा

अपना यह भू-लोक पुराना

रिसते हुए घाव जैसा है

विकिरण-रोग तुम हो सर्वव्यापक

बहुकरों से युक्त तुम जो घाव करते

वे नहीं भरते

देखो—कलेंडर कुटिलता से मुस्कराते

पलटता पृष्ठ अपने

भयंकर विस्फोट

संवत्सरों के साथ मर जाता

किंतु अपनी धूर्तता से

स्वयं बस काल में ही तुम टिके रहते

बहुत लंबे

हमारी रक्त-धारा में भ्रमण करते

भय के बीज बोते

अपने तरीक़े से हमारा माँस खाते

कीटाणु जैसे महामारी के

अभिशाप जैसे प्रलय के दिन का

चोरी-छिपे तुम आक्रमण करते

तुम्हारा दुष्कर्म अवगुण दर्प कायरता

दुर्भावनाओं से भरा उल्लास

सब तुम्हारे घाव जैसे हैं

देखने में जो अच्छे हैं

सत्य है यह

कल्पना से जन्य बिल्कुल भी नहीं है

शब्द अपने मैं नाली में बहाता

देखिए—किस तरह से नग्न होकर इन दिनों

नाचती है नग्नता

इससे पता चलता

कि तुमने जन्म फिर से पा लिया

दरियादिली से भेंट तुम अपनी लुटाते

अफ़सोस है

उपदेश पाएँगे नहीं तुमको मिटा

यातना डूबे धरातल से

दवाख़ाने में ऐसी दवा कोई

और कोई वैद्य भी ऐसा नहीं है

जो तुम्हें नाबूद कर दे

सिर्फ़ तुमको वक़्त काटेगा यही तय है

अफ़सोस बस इतना कि यह जल्दी नहीं होगा।

स्रोत :
  • पुस्तक : एक सौ एक सोवियत कविताएँ (पृष्ठ 265)
  • रचनाकार : रोबेर्त रोज़्देस्त्वेंस्की
  • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली
  • संस्करण : 1975

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