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धुंध में

dhundh mein

रविंदर

अन्य

अन्य

रविंदर

धुंध में

रविंदर

और अधिकरविंदर

    धुंध में लिपटे हैं

    सारे महल, मंडप, इमारतें

    नहीं दिखाई देता

    किसी भी राजा का बुर्ज़

    ही किसी महापुरुष की स्मृति

    दिखें दोस्तों के बिंब

    किसी चेहरे की

    झूठी मुस्कान तले छिपी त्योरियाँ

    किसी की विनम्रता

    अहंकार

    यों ही, छोटी-छोटी-सी

    धुंध पसरी हैं

    हमारे आसपास

    कुछ मुग़ालते यदि मुग़ालते ही रहें तो

    जीने के बहाने बनते

    साफ़ हो जाएँ संबंध

    यदि धुंध में लिपटे हुए

    दिन के उजले प्रकाश में

    छोटे-छोटे मिठास लिपटे

    झूठे वायदों के

    सूली पर टँगे रहने का

    आनंद लेगा कोई

    धुंध के आगोश में है

    हर समय कुछ

    भला होने की

    उम्मीद, आशा

    हर वक़्त कुछ

    अनचाहा घटित होने का

    भय

    धुंधलाई

    अनिश्चितता में

    तुम्हारा-मेरा

    सत्य है

    धुंध के पर्दे में बसता

    तुम्हारा हमारा

    ईश्वर है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 504)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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