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धौला कुआँ

dhaula kuan

शचींद्र आर्य

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शचींद्र आर्य

धौला कुआँ

शचींद्र आर्य

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    वह बोले, वहाँ एक कुआँ होगा और उन्होंने यह भी बताया,

    यह धौला संस्कृत भाषा के धवल शब्द का अपभ्रंश रूप है।

    जैसे हमारा समय, चिंतन, जीवन, स्पर्श, दृश्य, प्यास सब अपभ्रंश हो गए

    वैसे ही यह धवल घिस-घिस कर धौला हो गया।

    धवल का एक अर्थ सफ़ेद है।

    पत्थर सफ़ेद, चमकदार भी होता है।

    उन मटमैली, धूसर, ऊबड़ खाबड़ अरावली की पर्वत शृंखला

    के बीच सफ़ेद संगमरमर का मीठे पानी का कुआँ। धौला कुआँ।

    कैसा रहा होगा, वह झिलमिलाते पानी को अपने अंदर समाए हुए?

    उसके रहने पर भी उसका नाम रह गया।

    ज़रा सोचिए, किनका नाम रह जाता है, उनके चले जाने के बाद?

    कहाँ गया कुआँ? कैसे ग़ायब हो गया? किसी को नहीं पता।

    एक दिन,

    जब धौलाधार की पहाड़ियाँ इतनी चमकीली नहीं रह जाएँगी,

    तब हमें महसूस होगा, वह सामने ही था कहीं।

    ओझल सा।

    उस ऊबड़-खाबड़ मेढ़ के ख़त्म होते ही पेड़ों की छाव में छुपा हुआ सा।

    जब किसी ने उसे पाट दिया, तब उसे नहीं पता था,

    कुँओं का संबंध पहाड़ों से भी वही था, जो जल का जीवन से है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शचींद्र आर्य
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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