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देवी का उत्सव

dewi ka utsaw

अनुवाद : वी. पद्मावती

सिर्पी बालसुब्रह्मण्यम

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और अधिकसिर्पी बालसुब्रह्मण्यम

    जुडुए पम्बै वाद्य

    ख़ूब बज रहे थे।

    “कुंभों की पूजा के उपरांत”

    मारीयम्मन देवी का उत्सव मनाने हेतु

    कलशों की यात्रा

    किसी कलश को देर हो जाए तो

    पम्बैवाले ख़ूब पीटते हुए

    देवी के कलश को

    निमंत्रित कर देते थे।

    कलश उठाने वाला

    एक बालक

    भाव में गया

    पाँव उसके डगमगाते

    जा रहे पीछे की ओर।

    “आओ देवी आओ देवी—

    भक्तजन प्रार्थना में लग गए

    पम्बै बजने लगे

    रोमांच बढ़ने लगा

    फिर भी

    भाव में आया बालक

    पीछे ही रह गया।

    कंकण धारी

    बड़े कवुण्डर आए—

    “देवी माँ ! क्या चाहिए माँ...

    छोटी देवी बोलने लगी-

    “बकरे का रक्त चाहिए

    मुर्गे का सिर माँगती हूँ।...

    उत्तर पाते हुए

    भाव में आया बालक

    मुड़कर भागने लगा

    एकाएक दौड़ते हुए

    कवुण्डर ने उसके कान पकड़ लिए

    अरे... सीधे होकर चल

    नहीं तो एक थप्पड़ ऐसे...

    उठे हुए हाथ देखकर

    उसी समय विदा हो गई देवी।

    पम्बै : एक ताल-वाद्य।

    कवुण्डर : तमिलनाडु में प्रचलित एक जातिविशेष का नाम।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक ग्रामीण नदी (पृष्ठ 90)
    • रचनाकार : सिर्पी बालसुब्रह्मण्यम
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2016

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    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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