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ख़्वाहिश

khvahish

ममता जयंत

अन्य

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ममता जयंत

ख़्वाहिश

ममता जयंत

और अधिकममता जयंत

    ये किताबें हैं या तुम्हारी प्रेमिकाएँ

    जो झाँकती हैं बंद अलमारी के शीशे से तुम्हें 

    निहारती हैं उम्मीद भरी निगाहों से 

    एक बेआवाज़ मिलन की चाह लिए 

    और तुम देकर दिलासा करते हो आश्वस्त

    आने वाली छुट्टी के नाम पर 

    ये छुट्टी कौन-सी होगी पता नहीं

    किसी रविवार, तीज-त्यौहार 

    या किसी नेता-राजनेता की मौत पर 

    मनाए गए शोक की

    इससे नहीं है

    उनका कोई लेना देना 

    उन्हें तो बस तुम्हारा साथ चाहिए

    उनका ये भरोसा झूठा नहीं है

    कि वक्त पाते ही पुकारोगे नाम से 

    पलटोगे पन्ना दर पन्ना कई-कई बार

    पहुँचोगे शब्दों से अर्थों तक

    इनकी ख़ुशनसीबी देख ख़याल आता है

    काश कि होती कहीं मैं भी इसी अलमारी के बीच 

    करती तुम्हारा इंतज़ार

    बेतरह!

    स्रोत :
    • रचनाकार : ममता जयंत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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