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दर्द

dard

जयाप्रभा

अन्य

अन्य

और अधिकजयाप्रभा

    रेल जब तेज़ रफ़्तार से दौड़ रही होती है

    तो ढहे हुए क़िले की तरह पीछे छूट जाना ही दर्द है

    अँधेरे के सामने समर्पण कर चुकी शाम की तरह धुँधलाकार

    घुल जाना ही दर्द है

    गिरता हुआ आँसू ही है दर्द। चिता की राख़ है दर्द!

    कहे और अनकहे मन का मायाजाल है दर्द

    कैसे बयान करें दर्द को

    दर्द के बाद के ख़ालीपन को

    दर्द के लिए भाषा अपर्याप्त है

    वह गिरते हुए पीले पत्ते-सा है

    पुरानी बावड़ी की तरह है

    मुरझाए हुए सूखे पौधे-सा है

    आँगन में लगभग मिट गई अल्पना-सा है

    जब दर्द में होते हैं तो दर्द से बाहर आने की उम्मीद मुश्किल लगती है

    कड़ी धूप में पहली बारिश का अंदाज़ा भी मुश्किल होता है

    बिसूरते हुए अकेले टूटते हुए

    कैसे बयान करें दर्द को

    दर्द के बाद के ख़ालीपन को

    दर्द के लिए भाषा अपर्याप्त है

    घायल देह की तरह है वह

    कभी बरसने वाला बादल है वह

    वह कभी मरम्मत हो सकने वाली घड़ी है

    वह दिवंगत पिता की स्मृति की तरह है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द सेतु (दस भारतीय कवि) (पृष्ठ 64)
    • संपादक : गिरधर राठी
    • रचनाकार : कवयित्री के साथ पी.वी नरसा रेड्डी एवं देवीप्रसाद मित्र
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1994

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