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सब कुछ अच्छा ही नहीं होता

sab kuch achchha hi nahin hota

संदीप तिवारी

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संदीप तिवारी

सब कुछ अच्छा ही नहीं होता

संदीप तिवारी

और अधिकसंदीप तिवारी

    कितनी भी ख़राब फ़िल्म हो

    यही सोचकर

    देख लेता हूँ

    कि कोई एक दृश्य तो ठीक मिल ही जाएगा

    समूची फ़िल्म में

    कितनी भी ख़राब किताब हो

    यही मानकर

    पढ़ लेता हूँ

    कि कोई एक पंक्ति काम की तो होगी ही

    पूरी किताब में

    कितना भी बुरा आदमी हो

    यही सोचकर

    मिल लेता हूँ

    कि एकाध अच्छी बात तो होगी ही

    बुरे से बुरे आदमी में भी

    कितना भी कठिन समय हो

    यही सोचकर

    बिता देता हूँ

    कि कोई एक क्षण तो अच्छा होगा ही

    पूरे आठ पहर में

    सब कुछ अच्छा ही हो

    ऐसी कोई चाह नहीं!

    एक सूखे हुए पेड़ में

    एक हरी फुनगी जितना अच्छा

    कोई इतना भी कम नहीं होता!

    स्रोत :
    • रचनाकार : संदीप तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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