युवाकवि एवमिनस1 ने एक दिन
थिर्यक्रटर्स2 से जाकर अपना दुखड़ा रोया :
'क़लम घिसते दो साल हो गए मुझे
और अब तक मात्र एक काव्य-वृत्तांत मैं रच पाया।
यही अकेला काव्य मेरा संपूर्ण कृतित्व है।
उदास नज़रों मैं देख रहा हूँ कि
कविता की सीढ़ी ऊँची बहुत है, बहुत ही ऊँची,
और उसकी पहली पायदान से, जहाँ अभी मैं खड़ा हूँ,
ऊपर कभी मैं चढ़ नहीं पाऊँगा।'
ग़ुस्से से भभक उठा थियँक्रटस :
'ऐसी बात बोलना उचित नहीं। निंदनीय है यह !!
पहली पायदान पर होना भी
तुम्हारे लिए प्रसन्नता और गर्व का कारण बनना चाहिए।
इस पड़ाव तक पहुँचना भी छोटी उपलब्धि नहीं,
तुम्हारा अब तक का कृतित्व एक चमत्कार है।
यह पहली पायदान भी
दुनियादारी से परे
एक लंबी यात्रा की पहचान है।
इस पायदान पर खड़े होकर तुम साधिकार
भावनालोक के वासी होने का दावा कर सकते हो।
और इस लोक के नागरिकों की सूची में
कोई नया नाम दर्ज होना
दुष्कर और दुर्लभ की श्रेणी में आता है।
भरे पड़े हैं विधायक इसकी परिषदों में
कोई धूर्त उन्हें मूर्ख नहीं बना सकता।
इस पड़ाव तक आ पहुँचना मामूली उपलब्धि नहीं।
तुम्हारा अब तक का कृतित्व एक चमत्कार है।’
- पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 41)
- रचनाकार : सी. पी. कवाफ़ी
- प्रकाशन : मेधा बुक्स
- संस्करण : 2003
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