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एक रोमन उपनिवेश

ek roman upnivesh

अनुवाद : अशोक पाण्डे

सादी यूसुफ़

अन्य

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सादी यूसुफ़

एक रोमन उपनिवेश

सादी यूसुफ़

और अधिकसादी यूसुफ़

     

    हम यूनानी थे
    अरबी रेगिस्तान के छोर पर थे हमारे मकान
    लेकिन हमारे पास दो नदियाँ थीं
    और कुछ गाँव थे और खेत जिन्हें हम नदियों के पानी से सींचा करते थे
    हमारे पास कुछ कविगण थे जो छंद रचा करते थे
    और स्त्रियों की बातें करते थे और फूलों की
    और किनेसरीन1 में हमने दर्शनशास्त्र का विद्यालय स्थापित किया
    विचित्र बात यह थी कि वहाँ अक्सर अरस्तू के छात्र आया करते थे
    वे हमें एथेंस में लिखे जा रहे नवीनतम ग्रंथों के बारे में बताते थे

    लेकिन हम यूनानी थे और किसान थे
    हमने कोई हथियार नहीं बनाए
    न हमें अपने लड़कों को सिपाहियों में ढालना आता था
    (अरस्तू के छात्रों ने हमें यह नहीं बताया कि उनका अध्यापक
    मक़दूनियाई फिलिप के बेटे को शहर फ़तह करने का प्रशिक्षण दे रहा था)
    दुनिया बदलती है
    उन्होंने कहा,
    यहाँ तक कि सूरज भी पश्चिम से उगेगा

    अब मैं लड़खड़ाता बोल रहा हूँ दिवास्वप्न देखता हुआ
    और अकेला
    सिदोन2 में किरियाकोस3 के शराबख़ाने के भीतर
    मिट्टी का मेरा प्याला स्याह है
    और मेरे सारे बाल सफ़ेद
    मैं जानता हूँ पूरे एतबार के साथ मुझे कोई नहीं बता सकता
    कि रोमनों ने हमारा हुक्कापानी तभी बंद कर दिया था
    जब हम एक उपनिवेश बने थे।
    लेकिन मुझे शक़ है किरियाकोस इस बात को पहले से ही जानता है।
    दुनिया बदलती है
    उन्होंने कहा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 384)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : सादी यूसुफ़
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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