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कोट

coat

नेमिचंद्र जैन

अन्य

अन्य

और अधिकनेमिचंद्र जैन

    अचानक ही उसने कहा

    तुम्हें पता है

    कोट उलटा पहन रक्खा है तुमने

    और जेबें

    नहीं हैं वहाँ तुम

    जहाँ टटोलते हो

    इसीलिए छटपटाते रहते हो

    किसी किसी

    धुँधली अनबूझ बेमानी-सी

    तलाश में

    मैंने कुछ कहना चाहा

    मगर वह

    मेरी बात काटकर

    बोलता रहा

    रास्ते दो ही हैं

    या तो तुम अपने आप

    कोट को सीधा कर लो

    या फिर ज़िंदगी भर

    उलटा कोट पहने

    छटपटाते रहो

    बेशक एक

    और भी संभावना है

    कि कोई भीषण आँधी

    तूफ़ानी झंझावात

    उसे उतार ले जाए और

    तुम बिना कोट रह जाओ

    इतना कहकर वह

    सुने बिना मेरी कोई बात

    चलता बना

    तभी से मैं हूँ परेशान

    क्या सचमुच मैंने

    कोई कोट

    उल्टा या सीधा

    पहन रक्खा है?

    ऐसा कोई अंधड़ होता है

    या कभी आएगा

    जो मुझे कर सके

    आज़ाद

    कोई कोट होने या होने की

    दुविधा से?

    स्रोत :
    • पुस्तक : अचानक हम फिर (पृष्ठ 52)
    • रचनाकार : नेमिचंद्र जैन
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 1999

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