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चीज़ों का हठात् होना

chizon ka hathat hona

सुदीप बनर्जी

अन्य

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सुदीप बनर्जी

चीज़ों का हठात् होना

सुदीप बनर्जी

और अधिकसुदीप बनर्जी

    चीज़ों का हठात् होना। तबाह कर देता है

    हाथों को कितना भी ऊपर उठाओ दीवारों से

    सपनों को कैसे उतार लोगे बिस्तर तक

    किसी भी चेहरे की ईज़ाद से आईना तड़क जाता है

    लफ़्ज़ों का हठात् आक्रमण। और फिर कविता। और फिर हठात् उन्हीं लफ़्ज़ों का पारदर्शी होकर चीज़ों में

    शुमार हो जाना। तबाह कर देता है। पैर कितने भी

    फैलाओ नदी के नीचे रेत नहीं मिलती

    हठात् कर देता है तबाह। चीज़ों का हौसला बुलंद है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 21)
    • रचनाकार : सुदीप बॅनर्जी
    • प्रकाशन : मेधा बुक्स
    • संस्करण : 2005

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