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...चिट्ठी मगर उदासी की

...chiththi magar udasi ki

यश मालवीय

अन्य

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यश मालवीय

...चिट्ठी मगर उदासी की

यश मालवीय

और अधिकयश मालवीय

    उतरी-उतरी-सी सूरत है

    पूरनमासी की

    रंगों भरा लिफ़ाफ़ा

    चिट्ठी मगर उदासी की

    बीती तारीख़ों की

    छिलका-छिलका छायाएँ

    हम इनमें अपने को कैसे

    थोड़ा भी पाएँ

    अपने सहज वेग बिन बहती

    गंगा काशी की

    लौ देती आँखों में

    ठहरी हुई नमी-सी है

    शब्द-शब्द में जैसे कोई

    बर्फ़ जमी-सी है

    रह-रह याद रही

    हर इक बात प्रवासी की

    ठहरा हुआ समय भी

    अक्सर सपना होता है

    बारिश को भी, कड़ी धूप में

    तपना होता है

    पीर कहें क्या बीच राग में

    उभरी खाँसी की।

    स्रोत :
    • रचनाकार : यश मालवीय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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