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बचपन लौटता रहा

bachpan lautta raha

पवन चौहान

अन्य

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पवन चौहान

बचपन लौटता रहा

पवन चौहान

दादी चराती रही भेड़-बकरियाँ

और आठ वर्ष का पोता

खेलता रहा नदी की लहरों से

काफ़ी देर तक।

बुलाता रहा

रंग-बिरंगी चमकती मछलियों को अपने क़रीब बारंबार

लोककथा में सुने मोतियों को ढूँढ़ता रहा

हट-हट कर।

सर्दी के दिनों की झिलमिलाती

इस छोटी नदी में

तलाशता रहा डॉलफिन की उछाल।

डरता भी रहा

डिस्कवरी वाले बड़े मगरमच्छ

और दैत्यकार शार्क से।

भरी धूप में

अंजूरी भर-भर उछालता रहा वह नदी

चारों दिशाओं में

उंडेलता रहा सारे मोती

रंग-बिरंगी मछलियाँ और चमकीले पत्थर।

दादी देखती रही सब

पोते की अठखेलियाँ

स्वच्छंदता

उसका निश्छल मन

वह खिलखिलाती रही

बचपन लौटता रहा झुर्रियों में

बार-बार।

स्रोत :
  • रचनाकार : पवन चौहान
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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