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छिपे रहो भीतर ही

chhipe raho bhitar hi

नीलेश रघुवंशी

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नीलेश रघुवंशी

छिपे रहो भीतर ही

नीलेश रघुवंशी

और अधिकनीलेश रघुवंशी

    कुछ-कुछ हो रहा है मुझे, शायद तुम अब आने वाले हो

    सारी दुनिया के बच्चे, सबके सो जाने के बाद ही, क्यों सोचते हैं आने के बारे में

    मेरे एकदम पास, तुम्हारे पापा सोए हुए हैं

    क्या उन्हें जगाकर बता देना चाहिए कि तुम आने वाले हो

    बहुत गहरी नींद में हैं वो,

    अभी उनमें एक नन्हा-मुन्ना दिख रहा है

    परी नन्हीं-सी या नन्हा-सा राजकुमार, फिर वही बात

    पूरे नौ महीने एक ही बात, तुम हो कौन... सुंदर रहस्य

    दर्द बढ़ता जा रहा है, समझ नहीं रहा कुछ

    तुम्हारे जन्म से पहले का दर्द या यूँ ही बस महीने जैसा दर्द हो रहा है

    तुम क्यों उत्पात मचा रहे हो, दर्द के साथ-साथ जान निकली जा रही है मेरी

    ओह श्रीराज... दबी-घुटी चीख निकल ही गई

    अरे रे, श्रीराज तो पसीने-पसीने हो रहे हैं, लगता है कि बहुत तेज़ बारिश होने वाली है

    बिजली कड़के इससे पहले ही छुप जाते हैं हम दोनों

    छिपे रहो तुम भी भीतर ही...

    दीये की लौ की तरह जलते-बुझते-टिमटिमाते दर्द हो रहे हैं

    ये दर्द हैं, या जान लेने का सुंदर सजीव तरीक़ा

    अस्पताल पहुँच ही गई मैं, आस-पास मेरे डॉक्टर्स और नर्स

    रात साढ़े बारह से शुरू हुई यह यात्रा, शाम के पाँच बजे तक

    रुकने का नाम ही नहीं ले रही

    यह तो नरक है, नरक! जन्म देना, एक यातना से गुज़रना है

    यह क्या दे रहे हो तुम अपनी माँ को?

    आँखें मुँदी जा रही हैं अब

    एक-एक कर, मेरे आस-पास, जो मेरे अपने थे, कमरे में रह गए

    डॉक्टर्स और नर्सों के साथ लेबर-रूम में जा रही हूँ मैं

    प्रसव-पीड़ा को कोई और नाम देना चाहिए

    ये ये ये...

    तुम्हारे रोने की आवाज़ सुनाई दी

    रोने की आवाज़ से मुझे लग रहा है, तुम नन्हे-से बदमाश राजकुमार हो,

    इतनी ज़ोर से क्यों रो रहे हो बेटे?

    अप्रैल फूल बनाया तुमने :

    दिन शनिवार, शाम छह बजकर उनचास मिनट ठीक इसी समय तो शाम आती है अपने घर की छत पर

    मुस्कुरा रही होगी शाम और सूरज सुस्ता रहा होगा मेरी तरह।

    स्रोत :
    • रचनाकार : नीलेश रघुवंशी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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