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जतिन एंड विंग्स

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और अधिकजतिन एंड विंग्स

    मैं था कभी

    घर का सबसे प्यारा हिस्सा

    तुम्हारी मेरी हर मुलाक़ात से

    जुड़ा है एक क़िस्सा

    किसी के जाने का ग़म हो

    या किसी के आने की ख़ुशी

    उलझे हुए माँझे हों

    या सुलझे हुए सवाल

    सन्नाटों में दबी चीख़ें हों

    या चाँद के ख़ूबसूरत होने का पहला एहसास

    सब छुपे हैं इन्हीं कोनों में

    और तेरा हर एक आँसू भी

    सँभाल रखा है उसी कोने में

    ईंटों और

    चादरों से बनाए वे घर याद हैं?

    सुबह की तीखी धूप से बचने को

    क्या मेरी छाँव याद है?

    क्या दूर वह पहाड़ याद है,

    जिसके पेड़ गिनते थे तुम?

    पता है अब तो पेड़ हैं

    वह पहाड़

    ऐसा लगता है मानो

    गिनते रहते तो वहीं रहते

    मुझे तो याद है हर बात

    और जो साथ में देखे थे सारे ख़्वाब

    अब जो तुम निकल चुके हो

    पूरे करने के लिए ख़्वाब

    तो अकेला हूँ मैं

    कौन सुनेगा मेरा विलाप?

    पर आज भीगते-भीगते

    एक कश्ती आई पास

    हूबहू वैसी ही

    जैसी तुम बनाया करते थे

    और वह वहीं छुपा बैठा था

    उस टंकी के पीछे

    जहाँ तुम छुपा करते थे

    जब आए थे पहली बार तुम!

    ऐसे ही तो दिखते थे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : जतिन एंड विंग्स
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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