छल, प्रपंच, तिकड़मबाजी से

chhal, prpanch, tikaDambaji se

अनुज नागेंद्र

अनुज नागेंद्र

छल, प्रपंच, तिकड़मबाजी से

अनुज नागेंद्र

छल, प्रपंच, तिकड़मबाजी से, मची अहै कुल आपाधापी।

तोहरे आगे पूँछ हिलावै, केतनौ बड़का होय प्रतापी।

अस पिचाल फैलाया भैवा, हमसब तोहसे थर थर काँपी।

फाट परैं सब तोहरे गोड़े, लुच्चा, चोर, लफंगा, पापी।

अहा बहुत तू परसंतापी।

कान भरै मा माहिर बाट्या, तू एहमाँ जगज़ाहिर बाट्या।

एहमूँ ऎंठया ओहमूं ऎंठया, कुर्सी लेह्या फ़रकते बैठ्या।

जौन मने मा आवा बोल्या, भेद केहू कै केहुसे खोल्या।

केहुके काने ऐसा फुसक्या, आग लगाया चुप्पे खसक्या।

इत्मिनान से गढ़ेंन बिधाता, तोहरे सारी विद्या ब्यापी।

अहा बहुत तू परसंतापी।

सलकन्ते केहू रहै ना पावै, दुःख तकलीफ़ कहै ना पावै।

बिना बात के आग लगावा, तुहीं दौड़ि दमकल बोलवावा।

डार फरी मुल नई ना तनिकौ, हयाशरम छुइगई तनिकौ

मगरमच्छ तोहरे झोली मा, ग़ज़ब दहाड़ अहै बोली मा।

चमड़ी तक खलियाय लेया तू, तोहरे हाँथे ऐसी रांपी।

अहा बहुत तू परसंतापी।

कबतक तू मनमानी करब्या, गावँ बेंचि परधानी करब्या।

घड़ा पाप कै जब भरि जाए, सोने कै लंका जरि जाए।

अब तू जबतक हारि जाब्या, चार लात तू मारि जाब्या

तबतक भाय सुधरब्या तू, काम नीक कुछ करब्या तू।

पाप तोहार बंड़ेरी चढ़िगा, अब हम कबतक मूँदी ढाँपी।

अहा बहुत तू परसंतापी।

स्रोत :
  • रचनाकार : अनुज नागेंद्र
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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