Font by Mehr Nastaliq Web

चटखे शीशों में समंदर

chatkhe shishon mein samandar

सुखिंदर

अन्य

अन्य

सुखिंदर

चटखे शीशों में समंदर

सुखिंदर

और अधिकसुखिंदर

    मेरे दोस्त कहते हैं :

    उन्हें ऐसी कविता नहीं चाहिए

    जो काँटों-सी चुभती रहे

    कविता, जिसमें विद्रोह की भावना

    भाप-सी उठती हुई

    उनके मन-मस्तिष्क में

    तेज़ाबी रसायन की तरह

    उतरती बैठती जाए

    वे कहते हैं :

    कविता तुम्हारे मन-मस्तिष्क में

    आनंद की ऐसी भावना जगाए

    जैसे पालतू कुत्ते की

    पूँछ पर हाथ फिराकर

    अनुभव करते हो तुम

    वे कहते हैं :

    कविता तुम्हारे मन-मस्तिष्क में

    अदाओं के वास्ते ऐसी भावना जगाए

    जैसे बापू गाँधी के बंदरों को

    हर जलसे जुलूस में

    अदाएँ दिखाते देखकर

    अनुभव करते हो तुम

    कविता, वे कहते हैं :

    तुम्हारे मन-मस्तिष्क में

    जीने की ऐसी भावना जगाए

    जैसी कैनेडा के पंजाबी

    रेडियो, टीवी प्रस्तुतकर्ता की ओर से

    कुत्ते, बिल्लियों के जन्मदिन संदेशों से लेकर

    मेज़ों, कुर्सियों, सोफ़ों और टीवी स्क्रीन की

    लंबी आयु के वास्ते की गई दुआएँ सुनकर

    अनुभव करते हो

    कविता, वे कहते हैं :

    ऐसी हो

    जो काँटों-सी चुभती रहे

    तेज़ाबी नश्तर की तरह

    दिल दिमाग़ में उतरती चली जाए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 310)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए