इस क़स्बे में उनका आख़िरी पड़ाव था
वे सरकारी ख़र्च पर कबीर को गाने आए थे
सरकार की तरफ़ से थी व्यवस्था उनकी
एस.डी.एम. ने तहसीलदार से कहा था
तहसीलदार ने गिर्दावर से
गिर्दावर ने पटवारियों से
पटवारियों ने दिलवा दिया था उन्हें माइक
स्कूल के हाल में कुर्सियाँ पहले से पड़ी थीं
ताँगे में ऎलान हुआ था सरकारी ढंग का
जिसमें चंदूलाल कटनी वाले से ज़्यादा
सरकार के संस्कृति विभाग का ज़िक्र हुआ
इतना सब होने के बाद चंदूलाल को सुनने
आए पचासेक लोग
ऑर्गन पर एक लड़का बैठा था
जिसका चेहरा बहुत सुंदर था
अपनी पोलियोग्रस्त टाँगों को उसने
सफ़ाई से छुपा लिया था ऑर्गन के उस तरफ़
और बैसाखियाँ सरका दी थीं परदे के पीछे
तबलावादक ऐसा जान पड़ता था
जैसे किसी ध्वस्त मकान के मलबे में से
अभी निकलकर आया हो बाहर
उसे मुस्कुराने का कोई अभ्यास नहीं था
पर वह मुस्कुराए जा रहा था लगातार
चंदूलाल तनकर बैठे थे हारमोनियम लिए
आठ घड़ी किया शॉल पड़ा था उनके कंधों पर
गाने को तत्पर थे चंदूलाल
पर जुट नहीं रहे थे उतने लोग
उनके झक सफ़ेद कपड़ों में
चुपके से आकर दुबक गई थी उदासी
बेमन से गाने को हुए ही थे चंदूलाल
इतने में अचानक आ गए अपर साहब
अपर साहब को आता देख
खड़े हो गए श्रोता
खड़ा हो गया सरकारी तंत्र
चंदूलाल के गले में अटके कबीर भी
खड़े हो गए चंदूलाल के साथ।
- रचनाकार : हरिओम राजोरिया
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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