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चंबल पर रेल

chambal par rail

सिद्धेश्वर सिंह

अन्य

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सिद्धेश्वर सिंह

चंबल पर रेल

सिद्धेश्वर सिंह

और अधिकसिद्धेश्वर सिंह

    कुछ थम-सी गई है

    सरपट भागती हुई रेलगाड़ी

    जो कि चली रही है दूर दिल्ली से

    हो सकता है यह ठहराव विनय हो लोहे का

    दिल है आख़िर

    वह कहीं भी ढूँढ़ लेता है धड़कने का सबब

    धमक से टूटी है जल की एकाग्रता

    सहसा चौकन्ने हो गए हैं जलचर-थलचर

    ऊपर आसमान में उड़ते पाखी भी

    अपलक निहार रहे हैं रोज़ाना का देखा हुआ दृश्य

    और ख़ुश हो रहे हैं बिना बात

    यह दुपहर है सर्दियों की

    कुछ सकुचाता हुआ खिला है घाम

    शीत और पाले से ठिठुरी हुई नदी को देखकर

    पुल पर ठिठक गई है ट्रेन

    मुसाफ़िरों की आँखें एकबारगी विलग हो गई हैं

    मोबाइल के चमकदार स्क्रीन से

    किसी चमत्कार की तरह

    जल सबको सजल कर देता है

    वह चाहे चंबल में हो

    या कि हमारे तुम्हारे मन के बीहड़ में

    जहाँ दौड़ते रहते हैं इच्छाओं के बाग़ी घोड़े दिन-रात।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सिद्धेश्वर सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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