Font by Mehr Nastaliq Web

चल रहा इतिहास

chal raha itihas

अनुवाद : वी. पद्मावती

सिर्पी बालसुब्रह्मण्यम

अन्य

अन्य

सिर्पी बालसुब्रह्मण्यम

चल रहा इतिहास

सिर्पी बालसुब्रह्मण्यम

और अधिकसिर्पी बालसुब्रह्मण्यम

    पूंकूंटन ने कहा,

    “देखिए...

    आपकी नदी में मिला था

    संघकालीन सिक्का!”

    सिक्का नहीं...

    सिक्के का फ़ोटो था

    फिर भी

    आँखें हुईं गीली

    *

    'ऊबड़-खाबड़

    जनपथ की पहुँच से परे

    इस मिट्टी में भी

    छिपा हुआ है क्या

    इतिहास का निशान?

    ठुमक ठुमककर चलती

    नृत्यांगना है यह नदी

    नहीं तो

    इस अभिशप्त गाँव की परवाह

    कौन करता?

    सम्मानरक्षक

    साड़ी का आँचल

    यही नदी है न?

    ऐसे जीर्ण-शीर्ण मन को

    मरहम लगाने लगी

    पुरातत्त्ववेत्ता की सूचना...

    *

    आषियारु नदी के बाँध पर

    दिगंबर जैनियों के पत्थर के बिस्तर थे

    तीर्थंकर की मूर्ति भी थी

    उस समय धर्मावलंबी संन्यासियों के

    श्रीचरणों से स्पर्शित

    तीर्थ है यह नदी।

    नदी प्रवाह में तिरते आए

    महाराज के उपवन के रसीले आम को

    कन्या ने इच्छापूर्वक उठाया

    उसे मरवा डाला उस पापी ने

    संघ काव्य में रक्तिम दाग़ लगाते

    क्रूर राज नन्नन से शासित

    आने मलै पहाड़ से होकर

    अश्रु बहाती हुई

    रही है यह नदी

    और कितने रहस्य हैं।

    और कितने यवनों के सिक्के हैं।

    हे नदी! तेरी गोद में?

    *

    और एक बार

    पूंकूंटन को यहाँ लाना है।

    इस इतिहास से

    हाथ मिलाने से

    हाथ मिलाने हेतु

    भूमध्यसागर के तट पर

    टकसाल में ढली

    स्वर्ण-मुद्राओं को

    यहाँ खोज निकालने के लिए...

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक ग्रामीण नदी (पृष्ठ 64)
    • रचनाकार : सिर्पी बालसुब्रह्मण्यम
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2016

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए