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बस इतनी-सी

bus itni si

वाज़दा ख़ान

अन्य

अन्य

वाज़दा ख़ान

बस इतनी-सी

वाज़दा ख़ान

मैं कहाँ जानती थी कभी या अभी भी

कितना कुछ अदृश्य है

मैं साँस में हूँ, मैं पानी में हूँ

मैं हवा में हूँ... की तर्ज़ पर

पर पता नहीं कैसे पेटी में बंद बचे

जीवन का कोई सिरा लगातार

खुला था या उधड़ रहा था

या दूसरे हिस्से से चुपचाप संवाद

कर रहा था।

उतरा

उसी काली मिट्टी में

जिसके नीचे बीज दबा को अंखुआने लगता है

जिसके नीचे बंजर भावनाएँ दबीं तो

मिट्टी की तरह भुरभुरी हो जाती हैं

और मृत देह दबे तो मिट्टी के

रंग की हो जाती है

अंखुआना, भुरभुराना और मिट्टी

में मिल, मिट्टी रंग हो जाना,

बस इतनी-सी कहानी है

नहीं-नहीं बस इतनी-सी कविता है

नहीं-नहीं बस इतने-से रंग हैं

नहीं-नहीं बस इक आकाश है

कैनवस जितना

या इससे आगे?

स्रोत :
  • रचनाकार : वाज़दा ख़ान
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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