Font by Mehr Nastaliq Web

बुद्ध नया साल मना रहे हैं

buddh naya saal mana rahe hain

मनोज मल्हार

अन्य

अन्य

मनोज मल्हार

बुद्ध नया साल मना रहे हैं

मनोज मल्हार

नारियल के झालरदार के पत्तों के पार

गोल मटोल भरपूर खिली चाँदनी

छितराई चाँदनी में उड़ाने भरते पक्षीगण

बदल रहे आशियाना

इस डाल से उस डाल

इस वृक्ष से उस वृक्ष

चाँद रोशनी में रहस्यमय विस्तार लिए

घास के मैदान

परियाँ नाच रही

कोहरे के पार

कोई नहीं यहाँ

जबकि नया वर्ष आने को है!

सिर्फ़ सन्नाटा

ओस की बूँदें

और बुद्ध की ख़ामोश बुत।

कोई चबूतरे पर

मोमबत्तियाँ जला गया है

किसी के लेटने के निशाँ शेष।

उनके चेहरे पर

अँधेरा खिंचा,लगा

प्रस्तर चूर्ण गिरे हैं

हिल गई हैं रूप रंग रेखाएँ

ज्यों तनाव भरे चेहरे पर स्मित आए...

...और जादू में लिपटी आवाज—

‘बुद्धं शरणम गच्छामि’

‘अप्प दीपो भवः’ का घोष

हारमोनियम की लहरियाँ

सितार की तान...

अचानक आसमान में

रंगीनियाँ बिखर पड़ी हैं...

हँस पड़े बुद्ध हो आश्वस्त

ज्ञान आतंरिक अनुभूति से मिल गया हो मानो।

जश्न की आवाज़ें लगीं!

लो! नया साल शुरू हुआ अब...

एकदम से शोर मचाने लगे पक्षीगण

झूम रहे नारियल के झालरदार पत्ते।

ऊपर खिली भरी पुरी स्वप्निल-सी चाँदनी।

शाँति और प्रेम फैलता जा रहा।

कुछ नहीं है

बुद्ध नया साल मना रहे हैं

सिर्फ़ मैं देख रहा हूँ

वे मुस्कुरा रहे हैं।

स्रोत :
  • रचनाकार : मनोज मल्हार
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

संबंधित विषय

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY