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बिटिया का नाम

bitiya ka nam

ज्ञानेंद्रपति

ज्ञानेंद्रपति

बिटिया का नाम

ज्ञानेंद्रपति

तुम्हें किस नाम से बुलाऊँ

नन्हीं बिटिया

पृथ्वी की कोमलतम कोंपल!

तुम्हें किस नाम से पुकारूँ?

है कोई शब्द

जिस पर लगी हो इस दुनिया की धूल-गर्द

पसीने लहू के दाग़

है कोई शब्द जिसके खोखल में

छुपकर बैठी हो लज्जा

छुपकर बैठा हो पश्चाताप

मैं कवि

भाषा की शब्दों झुकी शाख

धरती के निकटतम

देता ही आया हूँ अनदेखी परित्यक्तों भावों घावों को नाम

मैं कवि, नन्हीं बिटिया

जिसके सारे शब्द निंदित और रक्ताक्त

मेरी गोदी में तू!

अपनी भोली माँ और भावुक पिता के प्राणों का सारांश

सरसों के दाने-सा नन्हा और नीरव तेरा मुँह

कली की तरह कसी तेरी मुट्ठी

नींद-सा नरम तेरा माथ

कि जिससे उठती है अलिखित कविता की कस्तूरी-गंध

नन्ही बिटिया

घुटनों के बल झुके हुए कवि के भीतर

एक शब्द बनकर उतरी तुम

कि जिस तरह उतरी हो माँ के स्तनों में दूध बनकर

पिता के वक्ष में बनकर सृष्टि की रक्षा का संकल्प

उसी तरह उतरो तुम

शीर्ण शब्दों से भरे हुए कवि के भीतर एक जीवित शब्द बनकर

उतरो तुम

उसके भूचाल पर रखकर अपना शांत पगतल।

स्रोत :
  • पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 72)
  • संपादक : कुमार मंगलम
  • रचनाकार : ज्ञानेंद्रपति
  • प्रकाशन : राजकमल पेपरबैक्स
  • संस्करण : 2022

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