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बछेड़े का इस दुनिया में आना

bachheDe ka is duniya mein aana

अनुवाद : सुरेश सलिल

फेरेन्त्स यूहाश

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फेरेन्त्स यूहाश

बछेड़े का इस दुनिया में आना

फेरेन्त्स यूहाश

और अधिकफेरेन्त्स यूहाश

    मई के महीने में जैसे ही शुरू हुईं कलियाँ चटखनी गुलाब की

    शुरू हुए खिलने 'एल्डर' के श्वेत पुष्प, 'लिलाक' के बैंजनी

    वक़्त था यही, जब घोड़ी को ब्याना और बछेड़े को इस दुनिया में

    आना था।

    घोड़ी या तो आराम फ़रमाती रही, या सुस्त-लटपट चाल में

    गाते-गुनगुनाते चरवाहा-छोकरे की अगुआई में

    फूले कुश-काश के बीच से होकर, गई चरागाह की तरफ़।

    सँझवाती बेला में, यहाँ-वहाँ डोलते, टीसती हड्डियों के साथ

    जब वापस लौटे वे, आसमान के नीले काँधे पर जमा चंद्रमा।

    लथपत पसीने से, काँपती-लरजती घोड़ी ने रुख़ किया

    सीधे अस्तबल को, और वहाँ बिछे पुआल के बिछौने पर जा ढही।

    उनींदी और पेट-भरी गायें बैठीं घोड़ी को घेर कर—

    गिनती हुई घड़ियाँ इंतजार की, चौकन्नी आँखों, कुछ सूँघती हुई-सी।

    बाद में, जब पुआल को भी नींद गई

    और किरणपुंज सप्तर्षि का घूमा दक्षिण दिशा की ओर,

    बछेड़े का जन्म हुआ। घोड़ी ने घंटों का वक़्त

    चिपकी आँखों वाले उस बछेड़े को चाटते-पपनियाते बिता दिया।

    सोया बछेड़ा उस रात माँ से सट कर

    पंखों का एक ढेर फट पड़ा बिछौने से।

    कभी नहीं रहा इतना नरम और गुँधाया हुआ पुआल

    कभी मयस्सर नहीं हुई दूध और बर्फ़ को भी बछेड़े—जैसी नींद।

    चटख़-लाल टोपी में भोर ने उछाल भरी

    दुनिया-जहान की ओर हाथ लहराया और बस, कुदक गई।

    उठा बछेड़ा लटपटाता हुआ

    सुमों में फँस रही थीं उसके सूख चुके लसदार झाग की गाँठें।

    और तब दिन ने अस्तबल की खुली खिड़की से

    फड़फड़ाए अपने ग़ुस्से से फूले नथुने

    और पाया बछेड़े को, माँ को थुनियाते दूध के वास्ते—

    हू-ब-हू मखमली टहोके।

    उसके बाद तुरत सभी दरख़्त आपस में खुसरपुसर करने लगे

    ज़मीन खुरचने लगे बाड़े में चूज़े।

    डाह ने, सूरजमुखी के फूलों की भाँति

    सुबह के सितारों को निस्तेज कर दिया।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 375)
    • रचनाकार : फेरेन्त्स यूहाश
    • प्रकाशन : मेधा बुक्स
    • संस्करण : 2003

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