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बिछोह की प्राथमिक भूमिका

bichhoh ki prathamik bhumika

आसित आदित्य

अन्य

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आसित आदित्य

बिछोह की प्राथमिक भूमिका

आसित आदित्य

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    तुम आई जैसे भरी दुपहरी

    बाबा के पुराने फ़िलिप्स के रेडियो पर

    वाराणसी के आकाशवाणी केंद्र से आते थे सदाबहार गाने।

    तुम आई जैसे पत्थर होती आँखों के नीचे

    आता है गहरा अर्धचंद्राकार निशान।

    जैसे गिरते दूध की बाल्टी में आता है झाग,

    जैसे भुतही बसवाड़ी के ऊपर चढ़ जाता है चाँद।

    तुम आई―हज़ारों-हज़ार तरीक़ो से हज़ारों-हज़ार बार आई।

    परंतु इतनी ख़ूबसूरत पंक्तियों के मध्य

    कितना भयावह है ये लिखना, मेरी जान,

    कि अब सकोगी तुम

    कि अब हमारे प्रेम के क्षितिज पर मँडरा रहे हैं जाति के बनैले प्रेत।

    बहुत मुमक़िन है अब कि मर जाए,

    माटी में मिल जाएँ हम

    कि मिटा दिए जाएँ वो तमाम प्रेमपत्र जिन्हें

    चाँद के साथ चुहलबाज़ी करते हुए तुमने लिखा था मेरे लिए

    कि मिटा दी जाएँ मेरी वो कविताएँ तमाम

    जिन्हें तुम्हारी यादों के गुलमोहर के तन पर उकेरा था मैंने

    कि मिटा दिए जाए परंपराओं की छाती से हमारे क़दमों के वो निशान

    जिन्हें देखकर कभी आसमान में चढ़ता था, पश्चिम में ढलता था सूरज।

    परंतु तुम्हें, मुझे, हम सबको

    ये याद रखना चाहिए कि कुछ चीज़ें शीशा होती हैं

    लाखों बरस लगते हैं ख़त्म होने में उन्हें।

    हमें याद रखना चाहिए

    (और यदि हो मुमकिन तो मुस्कुरा लेना चाहिए पलभर को)

    कि लाख कोशिशों के बाद भी इस युग में नहीं मिट सकेंगे वो ख़्वाब हमारे

    जिन्हें दृष्टि की भाषा में एक दूसरे की अँजुरी पर सजाए थे हमने।

    हमारे ख़्वाब फूलों की मानिंद

    जाति के प्रेतों के देह पर हर मौसम में खिलेंगे

    उसके धुन पर गुटूर गूँ करता कबूतरों का एक जोड़ा

    हर साँझ आले पर से रक्तिम आकाश में उड़ जाया करेगा।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आसित आदित्य
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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