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भूतनाथ घाट

bhutanath ghat

यतीश कुमार

अन्य

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यतीश कुमार

भूतनाथ घाट

यतीश कुमार

और अधिकयतीश कुमार

     

    कलकत्ते के भूतनाथ घाट को याद करते हुए

    भागीरथी हुगली का एक घाट 
    शमशान और शिव निवास 
    साथ-साथ 

    शव मोक्ष धाम घाट जा रहा है 
    दुल्हन भूतनाथ मंदिर से आ रही है 

    स्याही की तरह फैलता है एक कवि
    बार-बार पसरता-बिखरता
    दवात की तरह टूटता उसका संचय 

    मानो उसकी सारी रचनाएँ 
    सिमट गई हैं उस अकेले शव में 
    जिसे सजाया गया है 
    एक दुल्हन की तरह 

    सारी कविताएँ कवि ने ताउम्र
    समेटे रखी थी एक गुल्लक में
    वह गुल्लक अब फूट गया है 

    उछलते-बिखरते 
    ज़िंदगी के सिक्कों को 
    पागलों की तरह समेटने में 
    वह और पागल हुए जा रहा है 

    आग से फूटती चिंगरियाँ
    शब्दों के लावे हैं 
    समेटते ही हाथों में छाले आ रहे हैं 

    मानो शक्ति के अभाव में शिव
    'शिव' न होकर ‘शव' मात्र हो

    जीवन शेष लाशों की कतार है
    एक धागा आगे का हट रहा है 
    दूसरा पीछे से जुड़ रहा है 
    पंक्ति ख़त्म ही नहीं हो पा रही!

    माँ बैठी अंतिम विदाई की रूदाली गा रही है 
    एक पगली वहीं किनारे 
    सब पर हँसे जा रही है 
    एक औघड़ बिना संगीत के 
    नाचे जा रहा है गाते हुए जीवन राग 
    कि सबको एक दिन यहीं आना है 

    मुखाग्नि दी जा रही है 
    हुगली में उत्सव मनाता जहाज़
    हिचकोले ले रहा है 
    संगीत का भड़कीला शोर
    जीवन की विडंबना को और बढ़ा रहा है 

    मज़बूत आदमी भी यहाँ 
    सबसे कमज़ोर लग रहा है 

    भूतनाथ धाम में आस्था के फूल चढ़ रहे हैं 
    भूतनाथ घाट में किसी की रूह गा रही है 

    इन सबसे परे 
    शमशान से बिल्कुल सटे
    श्री गांधी हिंदी विद्यालय में बच्चों को
    पढ़ाया जा रहा है जीवन का पाठ 
    और बग़ल में 
    चिर निद्रा में लेटा है 
    अवधूत कवि चुपचाप...!

    स्रोत :
    • रचनाकार : यतीश कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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