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भयावह उपस्थिति की ग़ज़ल

bhayavah upasthiti ki ghazal

फेदेरीको गार्सिया लोर्का

अन्य

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फेदेरीको गार्सिया लोर्का

भयावह उपस्थिति की ग़ज़ल

फेदेरीको गार्सिया लोर्का

और अधिकफेदेरीको गार्सिया लोर्का

    चाहता हूँ मैं खो दे पानी अपनी गति

    और हवा अपनी घाटियाँ

    रात खो दे अपनी आँखें

    और मेरा दिल सोनल पुष्प अपना।

    मैं चाहता हूँ बैल बतियाएँ बड़े पत्तों से

    और मर जाएँ अँधेरे में केंचुए सभी

    चाहता हूँ दाँत दमके खोपड़ी के

    और पीला रेशम को छा ले।

    देख सकता हूँ गुँथे हुए दुपहर से

    घायल रात का मैं युद्ध।

    मैं प्रतिरोध करता हूँ

    हर विष के सूर्यास्त का

    और टूटे तोरणों का

    जहाँ पीड़ित है समय।

    मत करो दीप्त अपनी निर्वसनता पर

    किसी काली नागफनी-सी

    सरकंडों के बीच।

    छोड़ दो मुझ को

    रहस्यमय सितारों के त्रास में

    दिखाओं नहीं लेकिन

    मुझे अपनी कमर उजली, शांत।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 424)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : फेदेरीको गार्सिया लोर्का
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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