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भयाक्रांत का उभय-संकट

bhayakrant ka ubhay sankat

अर्पण कुमार

अन्य

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अर्पण कुमार

भयाक्रांत का उभय-संकट

अर्पण कुमार

और अधिकअर्पण कुमार

    कमज़ोरी के क्षणों में

    साझे किए उनसे

    अपने कुछ डर

    वे मेरे बेहद निजी डर थे

    मुझे क्या मालूम था

    आपसी तू-तू, मैं-मैं में

    वे ही डर

    पाउडर की तरह

    मुझपर छिड़के जाएँगे,

    समाहित करते हुए

    मेरे भय-अध्यायों को

    एक मोटी किताब बना दी जाएगी

    पुरज़ोर हवाले

    दिए जाएँगे जिससे,

    मेरी आत्मा पर

    उगाए जाएँगे छाले-ही-छाले

    मुझपर किए जाएँगे प्रहार

    मेरे उन्हीं भय-प्रसंगों से

    बताकर अपने डरों के बारे में उन्हें

    मैं कुछ हल्का तो हुआ था

    क्या पता था

    कि बेपरदा होकर घिरने जा रहा हूँ

    किसी उभय-संकट में

    किसी अनबन में

    वे मुझे अनावृत करेंगे

    जिन्हें राज़दार बनाया कभी

    शामिल हुए वे भी अंततः

    मुझे कमज़ोर करनेवालों में

    मुझे डरानेवालों में।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अर्पण कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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